Saturday, September 18, 2021

"पड़ोसन का नीला दुपट्टा" !

मोहल्ले में एक नई, बहुत ही खूबसूरत और जवान पड़ोसन  रहने आई।
पड़ोसन ने धीरे-धीरे मोहल्ले के घरों में आना-जाना शुरू किया।
एक दिन वह पड़ोसन सब्ज़ी वाले की दुकान पर वर्मा जी को मिली। उसने खुद आगे बढ़कर वर्मा जी को नमस्ते किया। वर्मा जी को अपनी क़िस्मत पर बड़ा गर्व हुआ। पड़ोसन बोली, "वर्मा जी, बुरा न मानें तो आपसे कुछ समझना था ?" 
वर्मा जी ख़ुशी से पगला ही गए। वजह ये भी थी कि उस पड़ोसन ने आम अनजान औरतों की तरह भैय्या नहींं कहा था, बल्कि वर्मा साहब कहा था !

वर्मा जी ने बड़ी मुश्किल से अपनी ख़ुशी छुपाते हुए बड़े प्यारे अंदाज़ में जवाब दिया "जी फरमाइए !"  

पड़ोसन ने कहा कि मेरे पति अक्सर काम के सिलसिले में बाहर रहते हैं। मैं इतनी पढ़ी-लिखी नहीं हूँ, बच्चों के एडमिशन के लिए आपके साथ की ज़रुरत थी ! "वो आगे बोली, "यूँ सड़क पर खड़े होकर बातें करना ठीक नहीं है। आपके पास वक़्त हो तो मेरे घर चल कर कुछ मिनट मुझे समझा दें, ताकि मैं कल ही बच्चों का एडमिशन करा दूँ !"

ख़ुशी से पगले हुए वर्मा जी चंद मिनट तो क्या सदियां बिताने को तैयार थे। उन्होंने फ़ौरन कहा कि जी, ज़रूर चलिए !

वर्मा जी पड़ोसन के साथ घर में दाखिल हुए, अभी सोफे पर बैठे ही थे कि बाहर स्कूटर के रुकने की आवाज़ सी आयी।
पड़ोसन ने घबराकर कहा, "हे ईश्वर, लगता है मेरे पतिदेव आ गए। उन्होंने यहाँ आपको देख लिया तो वो मेरा और आपका, दोनों का खून ही कर डालेंगे। कुछ भी नहीं सुनेंगे। आप एक काम कीजिये, वो सामने कपड़ों का ढेर है, आप ये नीला दुपट्टा सर पर डाल लें और उन कपड़ों पर इस्त्री करना शुरू कर दें। मैं उनसे कह दूँगी कि प्रेस वाली मौसी काम कर रही है ! "
वर्मा जी ने जल्दी से नीला दुपट्टा ओढ़कर शानदार घूँघट निकाला और उस कपड़े के ढेर से कपड़े लेकर प्रेस करने लगे। तीन घंटे तक वर्मा जी ने ढेर लगे सभी कपड़ों पर इस्त्री कर डाली थी। आखरी कपड़े पर इस्त्री पूरी हुई, तब तक पड़ोसन का खुर्रांट पति भी वापस चला गया था।    
पसीने से लथपथ और थकान से निढाल वर्मा जी दुपट्टा फेंक कर घर से निकले।

जैसे ही वो निकल कर चार क़दम चले, सामने से उनके पड़ोसी, दूबे जी आते दिखाई दिए।

वर्मा जी की हालत देख कर दूबे जी ने पूछा, "कितनी देर से अंदर थे ?" वर्मा जी ने कहा " तीन घंटों से, क्योंकि उसका पति आ गया था, इसलिए तीन घंटों से कपड़ों पर इस्त्री कर रहा था !"

दूबे जी ने आह भर कर कहा, "जिन कपड़ों पर तुमने तीन घंटे घूँघट निकाल कर इस्त्री की है, उन कपड़ों के ढेर को कल मैंने चार घंटे बैठ कर धोया है, क्या तुमने भी नीला दुपट्टा ओढ़ा था ?" 

😁😁😜😜😂😂😆😆😆😄😄😄

Wednesday, September 15, 2021

हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाए।

गांव की नई नवेली दुल्हन अपने पति से अंग्रेजी भाषा सीख रही थी, 
लेकिन अभी तक वो 'C' अक्षर पर ही अटकी हुई है।
 
क्योंकि, उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि 
'C' को कभी 'च' तो 
 
कभी 'क' तो 
 
कभी 'स' क्यूं बोला जाता है? 
 
एक दिन वो अपने पति से बोली, आपको पता है,

*चलचत्ता के चुली भी च्रिचेट खेलते हैं...*
पति ने यह सुनकर उसे प्यार से समझाया

 
, यहां 'C' को "च" नहीं "क" बोलेंगे।
इसे ऐसे कहेंगे, *"कलकत्ता के कुली भी क्रिकेट खेलते हैं।*
 
"पत्नी पुनः बोली *"वह कुन्नीलाल कोपड़ा तो केयरमैन है न?*
 
"पति उसे फिर से समझाते हुए बोला, "यहां "C" को "क" नहीं "च" बोलेंगे।
 
जैसे, *चुन्नीलाल चोपड़ा तो चेयरमैन है न...*
 
थोड़ी देर मौन रहने के बाद पत्नी फिर बोली, *"आपका चोट, चैप दोनों चॉटन का है न ?*
 
"पति अब थोड़ा झुंझलाते हुए तेज आवाज में बोला, अरे तुम समझती क्यूं नहीं, यहां 'C' को "च" नहीं "क" बोलेंगे...
 
ऐसे, *आपका कोट, कैप दोनों कॉटन का है न. ..*
 
पत्नी फिर बोली - अच्छा बताओ, *"कंडीगढ़ में कंबल किनारे कर्क है?*
 
"अब पति को गुस्सा आ गया और वो बोला, "बेवकुफ, यहां "C" को "क" नहीं "च" बोलेंगे।
 
जैसे - *चंडीगढ़ में चंबल किनारे चर्च है न*
 
पत्नी सहमते हुए धीमे स्वर में बोली," 
 
*और वो चरंट लगने से चंडक्टर और च्लर्क मर गए क्या?*
 
पति अपना बाल नोचते हुए बोला, " *अरी मूरख,* यहां
 'C' को "च" नहीं "क" कहेंगे*
 
*करंट लगने से कंडक्टर और क्लर्क मर गए क्या?*
 
इस पर पत्नी धीमे से बोली," अजी आप गुस्सा क्यों हो रहे हो... इधर टीवी पर देखो-देखो...
 
*"केंटीमिटर का केल और किमेंट कितना मजबूत है...*
 
"पति अपना पेशेंस खोते हुए जोर से बोला, *"अब तुम आगे कुछ और बोलना बंद करो वरना मैं पगला जाऊंगा।"*
 
ये अभी जो तुम बोली यहां 'C' को "क" नहीं "स" कहेंगे - 
 
*सेंटीमीटर, सेल और सीमेंट*
 
हां जी पत्नी बड़बड़ाते बोली, 
 
"इस "C" से मेरा भी सिर दर्द करने लगा है।
 
*और अब मैं जाकर चेक खाऊंगी,*
 
*उसके बाद चोक पियूंगी फिर*
 
*चॉफी के साथ*
 
*चैप्सूल खाकर सोऊंगी*
 
*तब जाकर चैन आएगा।*
 
उधर जाते-जाते पति भी बड़बड़ाता हुआ बाहर निकला..
 
*तुम केक खाओ, पर मेरा सिर न खाओ..*
 
*तुम कोक पियो या कॉफी, पर मेरा खून न पिओ..*
 
*तुम कैप्सूल निगलो, पर मेरा चैन न निगलो..*
 
*सिर के बाल पकड़ पति ने निर्णय कर लिया कि अंग्रेजी में बहुत कमियां हैं ये निहायत मूर्खों की भाषा है और ये सिर्फ हिन्दुस्तानियों को मूर्ख बनाने के लिए बनाई है। हमारी मातृभाषा हिन्दी ही सबसे अच्छी है।*

हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाए।😊😊😊

Friday, August 21, 2020

लखनवी तहजीब के क्या कहने

*"लखनवी तहजीब के क्या कहने!!"*

लखनऊ में एक "सुलभ शौचालय" के दरवाजे पर टंगा नोटिस😝😝😝

" निहायत ही एहतराम और अदब के साथ कहा जाता है,
की
इस्तेमाल के बाद यादगार छोड जाने से खानदान का नाम रोशन नही होगा,"

"इसिलिए हुजूर से गुजारिश है, कि 'अपने किए कराए पर पानी फेर जाएं!!'....🤣🤣🤣🤣😂😂😂😂

Monday, June 22, 2020

बचपन...

पांचवीं तक स्लेट की बत्ती को जीभ से चाटकर कैल्शियम की कमी पूरी करना हमारी स्थाई आदत थी लेकिन इसमें पापबोध भी था कि कहीं विद्यामाता नाराज न हो जायें । पढ़ाई का तनाव हमने पेन्सिल का पिछला हिस्सा चबाकर मिटाया था!

पुस्तक के बीच विद्या पौधे की पत्ती और मोरपंख रखने से हम होशियार हो जाएंगे ऐसा हमारा दृढ विश्वास था! 

कपड़े के थैले में किताब कॉपियां जमाने का तरीक़ा हमारा रचनात्मक कौशल था। हर साल जब नई कक्षा के बस्ते बंधते तब कॉपी किताबों पर जिल्द चढ़ाना हमारे जीवन का वार्षिक उत्सव था। माता पिता को हमारी पढ़ाई की कोई फ़िक्र नहीं थी न हमारी पढ़ाई उनकी जेब पर बोझा थी।

सालों साल बीत जाते पर माता पिता के कदम हमारे स्कूल में न पड़ते थे। एक दोस्त को साईकिल के डंडे पर और दूसरे को पीछे कैरियर पर बिठा हमने कितने रास्ते नापें हैं , यह अब याद नहीं बस कुछ धुंधली सी स्मृतियां हैं

स्कूल में पिटते हुए और मुर्गा बनते हमारा ईगो हमें कभी परेशान नहीं करता था, दरअसल हम जानते ही नही थे कि ईगो होता क्या है?

पिटाई हमारे दैनिक जीवन की सहज सामान्य प्रक्रिया थी। पीटने वाला और पिटने वाला दोनो खुश थे पिटने वाला इसलिए कि कम पिटे ओर पीटने वाला इसलिए खुश कि हाथ साफ़ हुआ।

हम अपने माता पिता को कभी नहीं बता पाए कि हम उन्हें कितना प्यार करते हैं क्योंकि हमें आई लव यू कहना नहीं आता था। आज हम गिरते सम्भलते  संघर्ष करते दुनियां का हिस्सा बन चुके हैं कुछ मंजिल पा गये हैं तो कुछ न जाने कहां खो गए हैं।

हम दुनिया में कहीं भी हों लेकिन यह सच है हमें हकीकतों ने पाला है। हम सच की दुनियां में थे, कपड़ों को सिलवटों से बचाए रखना और रिश्तों को औपचारिकता से बनाए रखना हमें कभी नहीं आया इस मामले में हम सदा मूर्ख ही रहे।

अपना अपना प्रारब्ध झेलते हुए हम आज भी ख्वाब बुन रहे हैं शायद ख्वाब बुनना ही हमें जिन्दा रखे है, वरना जो जीवन हम जीकर आये हैं उसके सामने यह वर्तमान कुछ भी नहीं। हम अच्छे थे या बुरे थे पर हम एक साथ थे काश वो समय फिर लौट आए।

एक बार फिर अपने बचपन के पन्नो को पलटिये सच में फिर से जी उठेंगे!