Monday, June 22, 2020

बचपन...

पांचवीं तक स्लेट की बत्ती को जीभ से चाटकर कैल्शियम की कमी पूरी करना हमारी स्थाई आदत थी लेकिन इसमें पापबोध भी था कि कहीं विद्यामाता नाराज न हो जायें । पढ़ाई का तनाव हमने पेन्सिल का पिछला हिस्सा चबाकर मिटाया था!

पुस्तक के बीच विद्या पौधे की पत्ती और मोरपंख रखने से हम होशियार हो जाएंगे ऐसा हमारा दृढ विश्वास था! 

कपड़े के थैले में किताब कॉपियां जमाने का तरीक़ा हमारा रचनात्मक कौशल था। हर साल जब नई कक्षा के बस्ते बंधते तब कॉपी किताबों पर जिल्द चढ़ाना हमारे जीवन का वार्षिक उत्सव था। माता पिता को हमारी पढ़ाई की कोई फ़िक्र नहीं थी न हमारी पढ़ाई उनकी जेब पर बोझा थी।

सालों साल बीत जाते पर माता पिता के कदम हमारे स्कूल में न पड़ते थे। एक दोस्त को साईकिल के डंडे पर और दूसरे को पीछे कैरियर पर बिठा हमने कितने रास्ते नापें हैं , यह अब याद नहीं बस कुछ धुंधली सी स्मृतियां हैं

स्कूल में पिटते हुए और मुर्गा बनते हमारा ईगो हमें कभी परेशान नहीं करता था, दरअसल हम जानते ही नही थे कि ईगो होता क्या है?

पिटाई हमारे दैनिक जीवन की सहज सामान्य प्रक्रिया थी। पीटने वाला और पिटने वाला दोनो खुश थे पिटने वाला इसलिए कि कम पिटे ओर पीटने वाला इसलिए खुश कि हाथ साफ़ हुआ।

हम अपने माता पिता को कभी नहीं बता पाए कि हम उन्हें कितना प्यार करते हैं क्योंकि हमें आई लव यू कहना नहीं आता था। आज हम गिरते सम्भलते  संघर्ष करते दुनियां का हिस्सा बन चुके हैं कुछ मंजिल पा गये हैं तो कुछ न जाने कहां खो गए हैं।

हम दुनिया में कहीं भी हों लेकिन यह सच है हमें हकीकतों ने पाला है। हम सच की दुनियां में थे, कपड़ों को सिलवटों से बचाए रखना और रिश्तों को औपचारिकता से बनाए रखना हमें कभी नहीं आया इस मामले में हम सदा मूर्ख ही रहे।

अपना अपना प्रारब्ध झेलते हुए हम आज भी ख्वाब बुन रहे हैं शायद ख्वाब बुनना ही हमें जिन्दा रखे है, वरना जो जीवन हम जीकर आये हैं उसके सामने यह वर्तमान कुछ भी नहीं। हम अच्छे थे या बुरे थे पर हम एक साथ थे काश वो समय फिर लौट आए।

एक बार फिर अपने बचपन के पन्नो को पलटिये सच में फिर से जी उठेंगे!

Sunday, June 21, 2020

राज़...... The mystery....

एक पंडित एक होटल में गया और  मैनेजर के पास जाकर बोला :- क्या रूम नंबर 39 खाली है?

मैनेजर:- हां, खाली है, आप वो रूम ले सकते हैं.. ,,

पंडित:- ठीक है, मुझे एक चाकू, एक 3 इंच का काला धागा और एक 79 ग्राम का संतरा कमरे में भिजवा दो।

मैनेजर:- जी, ठीक है, और हां, मेरा कमरा आपके कमरे के ठीक सामने है,अगर आपको कोई दिक्कत होती है तो तुम मुझे आवाज दे देना,,,

पंडित:- ठीक है,,,

रात को...................

पंडित के कमरे से तेजी से चीखने चिल्लाने की और प्लेटो के टूटने की आवाज आने लगती है

इन आवाजों के कारण मैनेजर सो भी नही पाता और वो रात भर इस ख्याल से बैचेन होने लगता है कि आखिर उस कमरे में हो क्या रहा है?

अगली सुबह.............
जैसे ही मैनेजर पंडित के कमरे में गया वहाँ पर उसे पता चला कि पंडित होटल से चला गया है और कमरे में सब कुछ वैसे का वैसा ही है और टेबल पर चाकू रखा हुआ है।

मैनेजर ने सोचा कि जो उसने रात में सुना कहीं उसका मात्र वहम तो नही था,,
और ऐसे ही एक साल बीत गया....
एक साल बाद........

वही पंडित फिर से उसी होटल में आया और रूम नंबर 39 के बारे में पूछा?

मैनेजर:- हां, रूम 39 खाली है आप उसे ले सकते हो,,,

पंडित:- ठीक है, मुझे एक चाकू, एक 3 इंच का धागा और एक 79 ग्राम का संतरा भी चाहिए होगा,,,

मैनेजर:- जी, ठीक है,,,

उस रात में मैनेजर सोया नही, वो जानना चाहता था कि आखिर रात में उस कमरे में होता क्या है?

तभी वही आवाजें फिर से आनी चालू हो गई और मैनेजर तेजी से पंडित के कमरे के पास गया, चूंकि उसका और पंडित का कमरा आमने-सामने था, इस लिए वहाँ पहुचने में उसे ज्यादा समय नही लगा

लेकिन दरवाजा लॉक था, यहाँ तक कि मैनेजर की वो मास्टर चाभी जिससे हर रूम खुल जाता था, वो भी उस रूम 39 में काम नही करी

आवाजो से उसका सिर फटा जा रहा था, आखिर दरवाजा खुलने के इंतजार में वो दरवाजे के पास ही सो गया.....

अगली सुबहा...........

जब मैनेजर उठा तो उसने देखा कि कमरा खुला पड़ा है लेकिन पंडित उसमें नही है।

वो जल्दी से मेन गेट की तरफ भागा, लेकिन दरबान ने बताया कि उसके आने से चंद मिनट पहले ही पंडित जा चुका था,,,

उसने वेटर से पूछा तो वेटर ने बताया कि कुछ समय पहले ही पंडित यहाँ से चला गया और जाते वक्त उनसे होटल के सभी वेटरों को अच्छी खासी टिप भी दी.....

मैनेजर बिलबिला के रह गया, उसने निश्चय कर लिया कि मार्च में वो पता करके रहेगा.... कि आखिर ये पंडित और रूम 39 का राज क्या है...

मार्च वही महीना था, जिस महीने में हर साल पंडित एक दिन के लिए उस होटल आता था,,

अगले साल........

अगले साल फिर वही पंडित आया और रूम नंबर 39 मांगा?

मैनेजर:- हां, आपको वो रूम मिल जाएगा

पंडित:- मुझे एक 3 इंच का धा गाएक 79 ग्राम का संतरा और एक धार दार चाकू भी चाहिए,,,

मैनेजर:- जी ठीक है,,,

रात को.....

इस बार मैनेजर रात में बिल्कुल नही सोया और वो लगातार उस कमरे से आती हुई आवाजो को सुनता रहा

जैसी ही सुबह हुई और पंडित ने कमरा खोला, मैनेजर कमरे में घुस गया और पंडित से बोला:-

आखिर तुम रात को इन सब चीजों के साथ इस कमरे में क्या करते हो..? ये आवाजें कहां से आती हैंं...

जल्दी बताओ..?

पंडित ने कहा:- मैं तुम्हे ये राज तो बता दूंगा लेकिन एक शर्त है कि तुम ये राज किसी को नही बताओगे,,,

चूंकि मैनेजर ईमानदार आदमी था इसलिए उसने वो राज आज तक किसी को नही बताया

और अगर ये राज वो किसी को बताएगा औऱ मुझे पता चलेगा तो मैं आपको जरूर बताऊँगा...ध्यान से पढ़ने के लिए धन्यवाद 🙏🏻😆😆

खाली समय में क्या करूँ, दिमाग तो मेरा भी खराब हुआ था ये कहानी पढ़ कर, लेकिन आपको बता कर कलेजे को ठंडक पड़ गयी😅😷

Saturday, March 28, 2020

एक माफीअपने ईश्वर से

*एक माफीअपने ईश्वर से*

*तू नाराज तो है इन्सानों से*
*नहीं तो मंदिरों के दरवाज़े बंद नही होते*

*सजा दे रही है कुदरत*
*अपने संग खिलवाड़ की*
*नही तो गुरुद्वारों के लंगर बंद नहीं होते*

*आज उन बारिश की बूंदों से संदेश मिला,*
*रोता तो तू भी है जब इंसान आंसु बहाता..*

*माफ़ करदे अपने बच्चों के हर गुनाह,*

*सब कहते हैं तेरी मर्ज़ी के बिना तो पत्ता भी नहीं हिलता...*
🙏🙏😰😥😰😥😰🙏🙏

*गलती "करने के लिये.."*
*कोई भी समय "सही" नहीं,*
*और...*
*गलती "सुधारने के लियें.."*
*कोई भी समय "बुरा" नहीं!*
😷🙏😷🙏😷🙏😷🙏😷

*अगर मुस्कुराहट के लिए ईश्वर का शुक्रिया नहीं किया,*

*तो आँखों मे आये आँसुओं के लिये शिकायत का हक़ कैसा?*

इस भयंकर महामारी के समय में प्रभु सिमरन करें और क्षमा याचना करें! अपने आप को, अपने अपनों को *घर ही रखना है!

😇🇮🇳👍*सुप्रभात, घर पर ही रहें* 🙏🏻🌺🌺☺🙂🙏🇮🇳

Tuesday, October 15, 2019

रेलवे में निजीकरण होने के पर

*_रेलवे में निजीकरण होने के पर_*

*रेलवे टिकट खिड़की पर:*...

*यात्री:* सर दिल्ली से लखनऊ का एक रिजर्व टिकट चाहिए।

*क्लर्क:* ₹ 750/-

*ग्राहक:* पर पहले तो 400/- था  !

*क्लर्क:* सोमवार को 400/- है, मंगल बुध गुरु को 600/- शनिवार को 700/- तुम रविवार को जा रहे हो तो 750/-

*ग्राहक :* ओह! अच्छा लोवर दीजियेगा, पिताजी को जाना है।
*क्लर्क* फिर 50 रुपये और लगेंगे।

*ग्राहक :* अरे! लोवर के अलग! साइड लोवर दे दीजिए।

*क्लर्क:* उसके 25 रुपये और लगेंगे।

*ग्राहक:* हद है! न टॉयलेट में पानी होता है, न कोच में सफ़ाई, किराया बढ़ता जा रहा है।

*क्लर्क:* टॉयलेट यूज का 50 रुपये और लगेगा, शूगर तो नहीं है ना? 24 घंटे में 4 बार यानी रात भर में 2 बार से ज़्यादा जाएंगे तो हर बार 10 रुपये एक्स्ट्रा लगेंगे।

*ग्राहक:* हैं! और बता दो भाई, किस-किस बात के पैसे लगने हैं अलग से।

*क्लर्क:* देखो भाई, अगर फोन चार्ज करोगे तो 10 रुपये प्रति घंटा, अगर खर्राटे आएंगे तो 25 रुपये प्रति घंटा,और अगर किसी सुन्दर महिला के पास सीट चाहिए तो 100 रुपये का अलग चार्ज है।
अगर कोई महिला आसपास कोई खड़ूस आदमी नहीं चाहती है, तो उसे भी 100 रूपये अलग से देना पड़ेगा। एक ब्रीफकेस प्रति व्यक्ति से अधिक लगेज पर, 20 रुपये प्रति लगेज और लगेगा। मोबाइल पर गाना सुनने की परमिशन के लिए 25 रुपये एक मुश्त अलग से। घर से लाया खाना खाने पर 20 रुपये का सरचार्ज़। उसके बाद अगर प्रदूषण फैलते हैं तो 25 रुपये प्रदूषण शुल्क।

*ग्राहक*(सर पकड़ के): ग़ज़बै है भाई, लेकिन ई सब वसूलेगा कौन ?

*क्लर्क:* अरे भाई निजी कंपनियों से समझौता हुआ है, उनके आदमी वसूलेंगे ।

*ग्राहक:* एक आख़िरी बात और बता दो यदि तुम्हें अभी कूटना हो तो कितना लगेगा ?

*क्लर्क:* काहे भाई ! जब रेलवे का निजीकरण हो रहा तब तो बड़े आराम से घर में बैठे थे और सोच रहे थे कि हमारा तो कुछ होने वाला है नहीं अब भुगतो
औऱ पब्लिक क्या सोचती है निजीकरण का असर सिर्फ कर्मचारियों पर होगी ।
रेल का निजीकरण हर भारतीय पे असर डालेगा।
🤨🤨🤨