Wednesday, October 19, 2016

Karva chouth 2016 special

19 अक्टूबर को  करवा चौथ के लिए  ध्यान  रहे :

1.जब पत्नी का उपवास हो उसे विश्वास दिलाएं कि आप उसके साथ हैं और आप भी भूखे रsहने का नाटक करें, चाहे भले ही होटल में नाश्ता कर आएं।

2. घर में कुछ खाएं-पीएं न ताकि पत्नी को भी इस बात का पूरा यकीन हो कि वाकई आप उसके साथ हैं...

3. इस दिन शेविंग न बनाएं, ताकि आपके चेहरे पर उपवास की फीलिंग झलके और हेवी नाश्ते की डकार पर कंट्रोल करें नहीं तो पोल खुल जाएगी...

4. जब पत्नी भूखी हो तो आप हंसे न, हंसी आ ही रही हो तो किसी गुप्त स्थान पर जाकर हंस आएं और पत्नी के सामने गंभीर हो जाएं...

5. संभव हो तो इस दिन ऑफिस से छुट्टी लेकर पत्नी के साथ घर पर ही हरिनाम संकीर्तन करें..

6.मोबाइल में ज्यादा उंगली न करें वॉट्सऐप और फेसबुक का त्याग भी इसदिन कर दें....

7. घर में फलाहारी पकवान लाकर रखें ताकि बीवी को अहसास होता रहे कि आपको उसके व्रत खोलने की चिंता है...

8.आवाज पर संयम रखें बच्चों से धीमे और करहाते हुए बोलें ताकि भूखी पत्नी को लगे कि आप वाकई भूखे हैं। इसदिन चटख रंगों के कपड़े न पहने और सादा पहनावा रखें।

9. सावधान, इस दिन पत्नी आपसे जिद करेगी कि आप भूखे न रहें कुछ खा लें लेकिन आप उसके झांसे में मत आना दरअसल वो आपका इम्तहान ले रही होती है।

10. इसदिन टीवी पर कोई कॉमेडी शो भी न देखें क्योंकि उसे देखकर आप हंसे तो फिर समझो फंसे।

बस पत्नी के उपवास के दिन इन टिप्स को अपना डाला तो फिर लाइफ होगी झींगालाला!

सभी शादीशुदा भाइयो और भाइयो के लिए जनहित में जरी....

Sunday, October 09, 2016

Santa - Fire man

संता को Fire department में नौकरी मिल गई ।

एक औरत ने फोन किया "Hello, मेरे घर पर आग लगी है"

संता - "आपने पानी डाला... ?"

औरत - "हा, फिर भी आग बुझी ही नहीं"

संता - "पगली, फिर हम वहाँ आकर क्या करेंगे, हम भी तो पानी ही डालेंगे ना..."

Friday, September 30, 2016

Bihar Special jokes

"  Bihar Special  "

अस्पताल में एक बच्चा पैदा होते ही नर्स से बोला :-
भूख लगी है नाश्ते में क्या है ?

नर्स :- लिट्टी चोखा

बच्चा :-
ई का,
दुबारा बिहार में आ गईनी का रे   !!!!

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एक बिहारी की तपस्या से प्रसन्न होकर
भगवान उसको अमृत देते हैं
तो
वो मना कर देता है

भगवान -
क्यों वत्स..
अमृत क्यों नहीं पी रहे.

बिहारी -
अभिये खैनी खाये हैं प्रभु।।

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अध्यापक - छात्र से -

भोजपुरी में अनुवाद करो ?-

दिल के टुकड़े टुकड़े कर के मुस्कुरा के चल
दिए.......

छात्र:- करेजवा के बुकनी बुकनी कर के दात
चियार के चल देहलू...

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काँनवेन्ट स्कूल और सरकारी स्कूल के
बच्चों में क्या अंतर होता है
आइये देखते हैं-

चिड़ियाधर मे काँनवेन्ट स्कूल के बच्चे-
oh!
wow monkey is sleeping, don't disturb

सरकारी स्कूल के बच्चे ...

" हऊ देख बनरा सुत्तल बा, मार ढेला सार
के!!!

Wednesday, September 28, 2016

Inspirational story of a true Banker

एक बैंक  अधिकारी के द्वारा  लोन  रिकवरी के दौरान उनके मनो स्थिति का चित्रण
वास्तविक घटना

घर में दो ही लोग सबसे परेशान रहते हैं...एक वो जो घर में सबसे बड़ा हो, और दूसरा वो जो सबसे छोटा हो...सबसे बड़ा सबसे बड़ी जिम्मेदारियों को ढ़ोता है, कंधे भले झुक जाएं उम्मीदों के बोझ से..हौसले न गिरे किसी के, बस इस ख्याल के साथ आगे बढ़ता रहता है...ये अलग बात है कि सभी ये कहने से नहीं चूकते कि अपने तो कोई काम करते नहीं बस हुकूम चलाते रहते हैं..
और जो सबसे छोटा उसके तो कहने ही क्या...ऊपर से नीचे आते सारे हुक्म उसी पर रुकते हैं क्योंकि उससे नीचे तो कोई है ही नहीं...यानी सबसे ऐश बीच वाले की ही होती है...ऊपर से कोई बात आई तो नीचे पहुँचा दो और नीचे से कोई माँग आई तो ऊपर पहुँचा दो...
ये इतनी बकैती में इसलिए कर रहा हूँ कि पिछले साढ़े चार साल से बैंक की अलग अलग शाखाओं पर सहायक प्रबन्धक बना हुआ था...न सबसे ऊपर था और न सबसे नीचे..हाँ, लेकिन कभी काम को ऊपर नीचे टरकाने वाला काम नहीं किया...इसके गवाह मेरे साथ काम किए सभी साथी, उच्चाधिकारी और सभी क्षेत्रों की जनता रही है..जहाँ से भी ट्रांसफर हुआ है मेरा, मेरी कमी को लोगों ने महसूस किया है...
इधर पिछले चार दिनों से मैं शाखा प्रबन्धक बना हुआ हूँ...घर में इज्जत बढ़ गई है..पहले टिफिन में सादी रोटी मिलती थी, अब पराठे मिल रहे हैं...पहले बैंक से लौटने पर गुड़ के साथ पानी पीने को मिलता था..अब तो बेकरी के बिस्किट और आलू के चिप्स के साथ अदरक वाली चाय भी मिल रही है....मैनेजरी का इतना फ़ायदा तो मिल ही रहा है..अलग बात है कि अब अंदरखाने से उठने वाली माँगो का स्तर भी इसी हिसाब से बढ़ने वाला है...

बैंक की नौकरी सेवा की नौकरी है...जनता की सेवा करते हुए मुझे अपने बैंक के लिए मुनाफ़ा कमाना है..लेकिन, इधर कुछ सालों से नीतियों में कोई खामी हो, आंकलन में हुई त्रुटि या फ़िर कोई दुर्योग..बैंक के दिए हुए कर्जों की वसूली बड़ी कम आ रही...फ़िर भी मैं तो बैंक का मैनेजर हूँ..मेरे लिए अपने बैंक का पैसा वसूलना ही मेरा काम है..चाहें मेरे सामने भी कोई किसान उतनी ही मुश्किलें क्यों न पैदा करदे जितनी एक खरबपति ने पूरी सरकार के सामने पैदा करदी है...मैं जनता हूँ कि वो बड़े स्तर का ऋणी दिनभर में जितने की शराब पी जाता होगा उससे भी कम कर्ज इन किसानों पर बाक़ी है...लेकिन मुझे वसूली करनी है क्योंकि मैं सरकारी नौकर हूँ और भावनाओं से नौकरी नहीं होती....

कल बैंक पहुंचते ही मैंने शाखा के सन्देशवाहक यादव जी से दस बड़े बकाएदारों की सूची माँगी कि जरा क्षेत्र में चलकर इनका हालचाल लिया जाए....मैं अपनी गाड़ी दौड़ाते हुए गांवों में निकला... सारे गाँव पता नहीं क्यों एक जैसे ही होते हैं..पतली सी पक्की सड़क के किनारे एक बड़े से पीपल का पेड़ और पेड़ के चारो और बना हुआ चबूतरा, चबूतरे के उस पार किसी सती माई का मन्दिर, और मन्दिर के सामने बैठकर कीर्तन गाते कुछ लोग..रास्ते से गुजरते लोगों को दौड़ दौड़ कर प्रसाद देते बच्चे...प्रसाद लेने के बाद राहगीरों का मन्दिर के दानपात्र में कुछ सिक्के डाल देना..मैंने भी प्रसाद लेकर चन्द सिक्के डाले थे उस पात्र में उस ईश्वर का नाम लेकर जो मुस्कुरा रहा होगा कहीं मेरी मूर्खता पर...पर क्या करें गांव के लोगों के लिए वो पीपल ही शिरडी है और वो चबूतरा ही कैलाश है..और उस मन्दिर की सती माई ही वैष्णो माता है...

बकाएदारों से पैसों का तगादा करना बड़ा ही अलोकप्रिय कार्य है..लेकिन ईश्वर की कृपा से मुझे लोगों की सराहना ही मिल रही थी..इसीबीच मैं एक ऐसे बकाएदार के घर पहुँचा जो यादव जी की गलती से उस सूची में आ गया था..असल में यादव जी ने पच्चीस हजार को ढ़ाई लाख पढ़ लिआ और मैं पहुँचा पूछते पूछते उस घर जहाँ मुझे पहुंचना था...गांव के लोगों ने बताया कि ये व्यक्ति मर चुका है..मैंने सोंचा कि कोई बात नहीं लड़कों से बात करेंगे...
घर के दरवाजे पर कोई नहीं था सिवाय तीन चार बच्चों के जिन्हें देखकर ये मैं समझ नहीं पाया कि ये जो कुछ खाते हैं इनकी देह में लगता भी है या इनका भोजन इन्हें ही खा रहा है...बच्चे कुछ खेल रहे थे, न जाने क्या..लेकिन खेल रहे थे.....
मैंने धीरे से दरवाजे पर लगी साँकल बजाई.... कोई नहीं आया..फिर मैंने आवाज लगाई..अब भी कोई नहीं आया...मैं चलने को हुआ तबतक एक आहट हुई...एक महिला बाहर आई..मैंने बकाएदार के बारे में पूछा..उत्तर मिला वो उस महिला के श्वसुर थे जो तीन साल पहले ही किसी बीमारी से मर गए...मैंने कहा कि अपने पति को बुलाओ..पता चला कि उस औरत का पति अभी कुछ महीने पहले मर गया...लोगों ने कहा कि हार्ट अटैक आया था...मेरा मन अजीब होने लगा..मैं अब तुरन्त वहाँ से लौटना चाहता था..तबतक एक दूसरी औरत सिर पर पल्लू रखे हुए बाहर आई पानी से भरे गिलास लेकर और पास पड़ी खाट को बिछाकर बैठने का इशारा किया..न चाहते हुए भी मुझे बैठना पड़ा.... तबतक यादव जी ने उन औरतों से कहना शुरू किया "बैंक का पैसा चुपचाप जमा कर दो, नहीं तो नए नए साहब आए हैं, कार्यवाई कर देंगे तो दिक्कत हो जाएगी...कर्जा ब्याज लगके चालीस हजार हो गया है..कुछ ब्याज में छूट मिल जाएगा अगर जल्दी जमा करदो तो..नही तो अब आर सी कटने ही वाली है.."

मैंने यादव जी को हाथ के इशारे से चुप रहने का इशारा किया..मेरे दिमाग में उस घर में हुई दो मौतों का सन्नाटा गूँज रहा था..मैंने चलने का उपक्रम किया..पहले आई महिला मेरे सामने हाथ जोड़कर आई और बोली "साहब ये मेरी देवरानी है और ये बच्चे हमारे ही हैं..बाप और भाई की मौत से ऐसा सदमा लगा मेरे देवर को वो तबसे आजतक खाट से ही नहीं उठा..हवा मार दिया है पूरे शरीर में...हिलता डुलता भी नहीं..इसी के इलाज में ससुर की जमीन भी बिक गई..लेकिन ठीक नही हुआ..मन में तो था कि एक आदमी भी रहेगा घर में तो घर बिना माथ के नही रहेगा..लेकिन, अब कौन सा आदमी और कहाँ का माथ...हम दो औरतें अब बस इसी अपराधबोध में जी रहे हैं कि आखिर ये बच्चे क्यों पैदा कर दिए.. आखिर इनका क्या दोष है जो इनका बाप नहीं रहा.."

कहते कहते वो औरत रोने लगी..काले चश्मे के शीशों के पीछे मेरी भावनाएँ भी छुप ही गईं..
मैं गाड़ी में बैठ गया..तबतक वही औरत फ़िर दौड़ती हुई आई और बोली कि साहब जेल मत भिजवाईएगा...
मैं सोंचता रहा मन में कि काश तुम मेरी माँ होती..तुम्हारे ये आँसू चीर चुके होतें अबतक मेरे सीने को..और फ़िर चाहें मुझे अपना खून ही क्यों न बेचना पड़ जाए...कागज के कुछ बंडल जिनके न होने से जलील हो रही हैं तुम्हारी आँखें और भूखे बिलख रहे हैं तुम्हारे बच्चे..उन बंडलों को फेंक मारता इस काले चश्मे वाले मैनेजर के मूँह पर और पोंछ देता तुम्हारे गालों पर बह चले तुम्हारे ये सारे दुःख...लेकिन, क्या करूँ, तुम मेरी माँ नहीं और मैं तुम्हारा कुछ भी नहीं...मैं तो बस एक बैंक मैनेजर हूँ...

कल का खिन्न हुआ मन आज भी ठीक नहीं था..आज बैंक भी मैं थोड़ी देर से पहुँचा.. बिना किसी से कुछ बात किए सीधे अपने चेम्बर में चला गया..स्टाफ़ को लगा होगा कि कहीं किसी बात पर नाराज़ तो नहीं..एक एक करके सबलोग नमस्ते करने आने लगे..मैंने सबको अपना अपना काम करने को कहा....

तबतक मेरी टेबल पर चाय आ चुकी थी..अभी मैंने कप में उंगली फ़ंसाई ही थी कि वो कल वाली औरत खड़ी दिखी, जैसे अंदर आना चाह रही हो..मैंने एक कर्मचारी को भेजकर उसे बुलाया...लग रहा था जैसे बहुत दिनों बाद घर से बाहर निकली हो...शायद अपने घर की सबसे अच्छी साड़ी पहनी थी..सकुचाते हुए मेरी मेज पर कुछ हरे हरे नोट रखे उसने..मैंने गिने तो चार हजार थे....हाथ जोड़कर बोली कि इतने का ही इंतजाम हो पाया है..आप कोई करवाई मत करिएगा..मैं जल्दी ही सब जमा कर दूंगी....
मन में आया कि वो पैसे उसे वापस करदूँ.. और कह दूँ कि खरबों लेकर भागे पर तो कोई कार्यवाई हो ही नहीं पा रही तो तुमपर क्या होगी...लेकिन मेरे भीतर का मैनेजर मेरे भावुक व्यक्तित्व पर हावी था...मैंने तुरन्त कैशियर को बुलाया और वो पैसे जमा करवाकर रशीद उस महिला को देकर जल्दी ही बाक़ी भी जमा करने की हिदायत दी....औरत जाने को हुई..जाने कौन सी भावना का ज्वार था मेरे भीतर या उसकी गरीबी पर इतना विश्वास था जो बारबार यही कहता था कि चार हजार रुपए भी ये कहाँ से ला सकती है...मैंने पूछ लिया कि ये पैसों का इंतजाम कैसे हुआ...जवाब पहले उसकी आँखों ने दिया..फिर उसके होठ बोल उठे..."चाय की दुकान पर बेटे को लगाया है साहब..वहीं से उधार मांग कर लाइ हूँ..उसकी तनखाह से कटेगा.."

धप्प से बैठ गया मैं अपनी कुर्सी में..आँखों के सामने नवल घूमने लगे..दूध का गिलास लेकर इनके पीछे पीछे कौन नहीं दौड़ता...एक कौर खाने के लिए कितनी सिफारिश करातें हैं...और यहाँ एक छः साल के बच्चे को ये क्या करना पड़ गया अचानक...मैंने तुरन्त अपना पर्स देखा..हजार के पाँच नोट पड़े थे...लेकिन डर भी लगा..कहीं किसी स्वाभिमानी का स्वाभिमान न आहत हो जाए...

मैंने कहा "तुम्हारे कर्ज़े में पाँच हजार की छूट आई है..और वो छूट मैंने अपने पास ही रखी है..ये लो पैसे और जल्दी से जाओ अपने बेटे को उस चाय की दुकान से छुड़ाकर ले आओ.." कहते कहते गला भरभरा आया मेरा..वो औरत भी रो पड़ी..मेरे पास आई मेरे सिर पर हाथ रखकर बोली "आपके बाल बच्चे बने रहेंगे साहब..." मैंने आसुंओं को पलकों पर रोकने का जतन करते हुए पैसे उसके हाथ में रखे और उसे जाने का इशारा किया...

वो जा चुकी थी..मेरा मन भी बहुत हल्का हो गया था...मैंने घँटी बजाकर यादव जी को बुलाया..चाय ठंडी हो गई थी..दूसरी मँगानी थी....