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Wednesday, September 15, 2021
हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाए।
Friday, August 21, 2020
लखनवी तहजीब के क्या कहने
*"लखनवी तहजीब के क्या कहने!!"*
लखनऊ में एक "सुलभ शौचालय" के दरवाजे पर टंगा नोटिस😝😝😝
" निहायत ही एहतराम और अदब के साथ कहा जाता है,
की
इस्तेमाल के बाद यादगार छोड जाने से खानदान का नाम रोशन नही होगा,"
"इसिलिए हुजूर से गुजारिश है, कि 'अपने किए कराए पर पानी फेर जाएं!!'....🤣🤣🤣🤣😂😂😂😂
Monday, June 22, 2020
बचपन...
पांचवीं तक स्लेट की बत्ती को जीभ से चाटकर कैल्शियम की कमी पूरी करना हमारी स्थाई आदत थी लेकिन इसमें पापबोध भी था कि कहीं विद्यामाता नाराज न हो जायें । पढ़ाई का तनाव हमने पेन्सिल का पिछला हिस्सा चबाकर मिटाया था!
पुस्तक के बीच विद्या पौधे की पत्ती और मोरपंख रखने से हम होशियार हो जाएंगे ऐसा हमारा दृढ विश्वास था!
कपड़े के थैले में किताब कॉपियां जमाने का तरीक़ा हमारा रचनात्मक कौशल था। हर साल जब नई कक्षा के बस्ते बंधते तब कॉपी किताबों पर जिल्द चढ़ाना हमारे जीवन का वार्षिक उत्सव था। माता पिता को हमारी पढ़ाई की कोई फ़िक्र नहीं थी न हमारी पढ़ाई उनकी जेब पर बोझा थी।
सालों साल बीत जाते पर माता पिता के कदम हमारे स्कूल में न पड़ते थे। एक दोस्त को साईकिल के डंडे पर और दूसरे को पीछे कैरियर पर बिठा हमने कितने रास्ते नापें हैं , यह अब याद नहीं बस कुछ धुंधली सी स्मृतियां हैं
स्कूल में पिटते हुए और मुर्गा बनते हमारा ईगो हमें कभी परेशान नहीं करता था, दरअसल हम जानते ही नही थे कि ईगो होता क्या है?
पिटाई हमारे दैनिक जीवन की सहज सामान्य प्रक्रिया थी। पीटने वाला और पिटने वाला दोनो खुश थे पिटने वाला इसलिए कि कम पिटे ओर पीटने वाला इसलिए खुश कि हाथ साफ़ हुआ।
हम अपने माता पिता को कभी नहीं बता पाए कि हम उन्हें कितना प्यार करते हैं क्योंकि हमें आई लव यू कहना नहीं आता था। आज हम गिरते सम्भलते संघर्ष करते दुनियां का हिस्सा बन चुके हैं कुछ मंजिल पा गये हैं तो कुछ न जाने कहां खो गए हैं।
हम दुनिया में कहीं भी हों लेकिन यह सच है हमें हकीकतों ने पाला है। हम सच की दुनियां में थे, कपड़ों को सिलवटों से बचाए रखना और रिश्तों को औपचारिकता से बनाए रखना हमें कभी नहीं आया इस मामले में हम सदा मूर्ख ही रहे।
अपना अपना प्रारब्ध झेलते हुए हम आज भी ख्वाब बुन रहे हैं शायद ख्वाब बुनना ही हमें जिन्दा रखे है, वरना जो जीवन हम जीकर आये हैं उसके सामने यह वर्तमान कुछ भी नहीं। हम अच्छे थे या बुरे थे पर हम एक साथ थे काश वो समय फिर लौट आए।
एक बार फिर अपने बचपन के पन्नो को पलटिये सच में फिर से जी उठेंगे!
Sunday, June 21, 2020
राज़...... The mystery....
एक पंडित एक होटल में गया और मैनेजर के पास जाकर बोला :- क्या रूम नंबर 39 खाली है?
मैनेजर:- हां, खाली है, आप वो रूम ले सकते हैं.. ,,
पंडित:- ठीक है, मुझे एक चाकू, एक 3 इंच का काला धागा और एक 79 ग्राम का संतरा कमरे में भिजवा दो।
मैनेजर:- जी, ठीक है, और हां, मेरा कमरा आपके कमरे के ठीक सामने है,अगर आपको कोई दिक्कत होती है तो तुम मुझे आवाज दे देना,,,
पंडित:- ठीक है,,,
रात को...................
पंडित के कमरे से तेजी से चीखने चिल्लाने की और प्लेटो के टूटने की आवाज आने लगती है
इन आवाजों के कारण मैनेजर सो भी नही पाता और वो रात भर इस ख्याल से बैचेन होने लगता है कि आखिर उस कमरे में हो क्या रहा है?
अगली सुबह.............
जैसे ही मैनेजर पंडित के कमरे में गया वहाँ पर उसे पता चला कि पंडित होटल से चला गया है और कमरे में सब कुछ वैसे का वैसा ही है और टेबल पर चाकू रखा हुआ है।
मैनेजर ने सोचा कि जो उसने रात में सुना कहीं उसका मात्र वहम तो नही था,,
और ऐसे ही एक साल बीत गया....
एक साल बाद........
वही पंडित फिर से उसी होटल में आया और रूम नंबर 39 के बारे में पूछा?
मैनेजर:- हां, रूम 39 खाली है आप उसे ले सकते हो,,,
पंडित:- ठीक है, मुझे एक चाकू, एक 3 इंच का धागा और एक 79 ग्राम का संतरा भी चाहिए होगा,,,
मैनेजर:- जी, ठीक है,,,
उस रात में मैनेजर सोया नही, वो जानना चाहता था कि आखिर रात में उस कमरे में होता क्या है?
तभी वही आवाजें फिर से आनी चालू हो गई और मैनेजर तेजी से पंडित के कमरे के पास गया, चूंकि उसका और पंडित का कमरा आमने-सामने था, इस लिए वहाँ पहुचने में उसे ज्यादा समय नही लगा
लेकिन दरवाजा लॉक था, यहाँ तक कि मैनेजर की वो मास्टर चाभी जिससे हर रूम खुल जाता था, वो भी उस रूम 39 में काम नही करी
आवाजो से उसका सिर फटा जा रहा था, आखिर दरवाजा खुलने के इंतजार में वो दरवाजे के पास ही सो गया.....
अगली सुबहा...........
जब मैनेजर उठा तो उसने देखा कि कमरा खुला पड़ा है लेकिन पंडित उसमें नही है।
वो जल्दी से मेन गेट की तरफ भागा, लेकिन दरबान ने बताया कि उसके आने से चंद मिनट पहले ही पंडित जा चुका था,,,
उसने वेटर से पूछा तो वेटर ने बताया कि कुछ समय पहले ही पंडित यहाँ से चला गया और जाते वक्त उनसे होटल के सभी वेटरों को अच्छी खासी टिप भी दी.....
मैनेजर बिलबिला के रह गया, उसने निश्चय कर लिया कि मार्च में वो पता करके रहेगा.... कि आखिर ये पंडित और रूम 39 का राज क्या है...
मार्च वही महीना था, जिस महीने में हर साल पंडित एक दिन के लिए उस होटल आता था,,
अगले साल........
अगले साल फिर वही पंडित आया और रूम नंबर 39 मांगा?
मैनेजर:- हां, आपको वो रूम मिल जाएगा
पंडित:- मुझे एक 3 इंच का धा गाएक 79 ग्राम का संतरा और एक धार दार चाकू भी चाहिए,,,
मैनेजर:- जी ठीक है,,,
रात को.....
इस बार मैनेजर रात में बिल्कुल नही सोया और वो लगातार उस कमरे से आती हुई आवाजो को सुनता रहा
जैसी ही सुबह हुई और पंडित ने कमरा खोला, मैनेजर कमरे में घुस गया और पंडित से बोला:-
आखिर तुम रात को इन सब चीजों के साथ इस कमरे में क्या करते हो..? ये आवाजें कहां से आती हैंं...
जल्दी बताओ..?
पंडित ने कहा:- मैं तुम्हे ये राज तो बता दूंगा लेकिन एक शर्त है कि तुम ये राज किसी को नही बताओगे,,,
चूंकि मैनेजर ईमानदार आदमी था इसलिए उसने वो राज आज तक किसी को नही बताया
और अगर ये राज वो किसी को बताएगा औऱ मुझे पता चलेगा तो मैं आपको जरूर बताऊँगा...ध्यान से पढ़ने के लिए धन्यवाद 🙏🏻😆😆
खाली समय में क्या करूँ, दिमाग तो मेरा भी खराब हुआ था ये कहानी पढ़ कर, लेकिन आपको बता कर कलेजे को ठंडक पड़ गयी😅😷